पूर्व राष्ट्रपति डॉ राम वरण यादव ने हुलाकी राजमार्ग के पूरा होने में देरी के कारण चुरे पहाड़ का दोहन होने पर चिन्ता जताई है । शनिवार को विराटनगर में पीताजी कृष्ण प्रसाद कोइराला मेमोरियल परिषद् द्वारा सम्मानित होते हुए, डॉ यादव ने बताया कि चूरे के अत्यधिक दोहन के कारण देश की अन्न उब्जाने वाली जगह संकट में है । चुरे पहाड़ के संरक्षण से महाभारत रेंज और तराई दोनों का संरक्षण होने की बात बताते हुए डा. यादव नें बड़े पैमाने पर कटाव, भूस्खलन और अन्य पर्यावरणीय गतिविधियों से पीड़ित है ।
महाभारत और चुरे पहाड उमर के हिसाब सें दुनिया का सबसे छोटा पर्वत होने के साथ साथ सबसें कमजोर क्षेत्र समेत है । संसाधनों की कमी, प्राकृतिक और साथ ही मानव प्रेरित कारकों के कारण चुरे के क्षेत्र में वनों की कटाई में तेजी आई है, और आजीविका के अवसर भी घटते जा रहे हैं । भूमिगत जल का कम होना और इस क्षेत्र में और आसपास के पारिस्थितिक क्षेत्र मर्ं होने वाली गतिविधियों के कारण ये क्षेत्र और भि अधिक संवेदनशील और नाजुक बनता जा रहा है ।
सरकार ने २००९ से 'राष्ट्रपति चूरे संरक्षण कार्यक्रम' के माध्यम से चूरे के संरक्षण पर अधिक जोर दिया है । इस कार्यक्रम मार्फत् चूरे वन संरक्षण की समस्याओं, चुनौतियों और मुद्दों की पहचान करने और गुणात्मक संरक्षण के लिए काम किया जाता है । पिछले ३२ सालों से चुरे क्षेत्र की पारिस्थितिक, भौगोलिक और जैव-भौतिक स्थिति तेजी से घट रही है। बढ़ते भूस्खलन और बाढ़, और मानवीय हस्तक्षेप ने चुरे को और अधिक नाजुक और सबसे कमजोर क्षेत्र बना दिया है जहां आजीविका संपत्ति की कमी/अपर्याप्तता और खाद्य असुरक्षा नोट की जाती है।
हालांकि, चुरे क्षेत्र में पर्यावरण के अनुकूल हरित उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोजगार और आय सृजन के कई अवसर हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा. यादव नें चुरे को एक समृद्ध जैविक-विविधता युक्क्षेत त्र के रूप में स्थापित करने के लिए, नीतिगत प्राथमिकताओं के कार्यों और परिणाम-उन्मुख प्रयासों के साथ दीर्घकालिक रणनीतियों को तैयार करने पर आवश्यकता जताई ।।